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कुंभ मेला: पौराणिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व

*कुंभ मेला* भारत का एक अद्वितीय और विश्व प्रसिद्ध धार्मिक पर्व है, जिसे चार प्रमुख स्थानों — हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है। यह मेला हर 12 साल में एक बार होता है और इनमें से प्रत्येक स्थान पर हर 3 साल में एक बार मेला आयोजित होता है। आइए समझते हैं कि कुंभ मेला क्यों मनाया जाता है और इसका क्या महत्त्व है।

### 1. *पौराणिक महत्व*
कुंभ मेले की उत्पत्ति हिंदू धर्म की *समुद्र मंथन* कथा से जुड़ी है। जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तब अमृत कलश (कुंभ) निकला। अमृत को लेकर देवताओं और असुरों में संघर्ष हुआ। इस संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें धरती पर चार स्थानों — हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन — में गिरीं।
इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है, जिसे *आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र* माना जाता है।

### 2. *आध्यात्मिक महत्व*
#### *पापों का शुद्धिकरण*
ऐसा माना जाता है कि कुंभ मेले के दौरान पवित्र नदियों (गंगा, यमुना, क्षिप्रा, गोदावरी) में स्नान करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

#### *आध्यात्मिक जागरूकता*
कुंभ मेला आत्म-जागरण और ध्यान का पर्व है। इसमें भाग लेने वाले श्रद्धालु पूजा, साधना और संतों के प्रवचन सुनते हैं, जो उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में मदद करते हैं।

#### *मंत्रों का प्रभाव*
कुंभ मेले के दौरान वैदिक मंत्रों और यज्ञों का आयोजन होता है, जो वातावरण को पवित्र और सकारात्मक ऊर्जा से भर देते हैं।

### 3. *ज्योतिषीय महत्व*
कुंभ मेला ज्योतिषीय घटनाओं पर आधारित है। यह उस समय मनाया जाता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति विशिष्ट राशियों में आते हैं।
– हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे कुंभ तब होता है जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं।
– प्रयागराज में यह तब मनाया जाता है जब सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं।
यह ग्रहों की स्थिति को मानव जीवन में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण का प्रतीक मानते हुए मनाया जाता है।

### 4. *सांस्कृतिक और धार्मिक एकता*
#### *संतों और साधुओं का संगम*
कुंभ मेला साधु-संतों और अखाड़ों के जमावड़े के लिए प्रसिद्ध है। नागा साधु, जो सामान्यतः समाज में नहीं दिखते, इस मेले में प्रकट होते हैं।
#### *धर्म और संस्कृति का प्रसार*
कुंभ मेला भारत की सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक है। यहां विभिन्न भाषाओं, परंपराओं और रीति-रिवाजों को एकसाथ देखा जा सकता है।

 

 

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