क्या सच में तारीख से है ‘दो जून की रोटी’ का कनेक्शन? आज तक कई लोगों को नहीं पता इसका असल मतलब
क्या है 2 जून की रोटी?
क्या सच में तारीख से है ‘दो जून की रोटी’ का कनेक्शन? आज तक कई लोगों को नहीं पता इसका असल मतलब
आज 2 जून है और दो जून की रोटी एक प्रसिद्ध कहावत है। कई लोग सोचते हैं कि इसका मतलब जून की 2 तारीख को खाई जाने वाली रोटी है पर ऐसा नहीं है। यह अवधी कहावत है जिसका असल मतलब कुछ और होता है।। यह कहावत लोगों के संघर्ष को दर्शाती है। आइए जानते हैं इसका सही मतलब।
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क्या आप जानते हैं दो जून की रोटी का मतलब?
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आज 2 जून है और आज की तारीख अपने आप में बेहद है। अब आप यह सोच रहे होंगे कि आखिर आज की तारीख में ऐसी क्या खास बात है। आपने सभी ने कभी न कभी एक कहावत जरूर सुनी होगी ‘दो जून की रोटी,’ लेकिन क्या आप इस कहावत का मतलब जानते हैं। क्या सच में यह कहावत आज की तारीख से जुड़ी हुई है। आइए आज इस आर्टिकल में जानते हैं दो जून की रोटी का असल मतलब-
क्या है 2 जून की रोटी?
बचपन से भी हम कई तरह की कहावतें और मुहावरें सुनते आ रहे हैं। दो जून की रोटी इन्हीं में से एक है, जिसे आपने कई सारी कहानियों में पढ़ा या सुना होगा। इतना ही नहीं कई हिंदी फिल्मों में भी आपने हीरो को यह डायलॉग मारते सुना होगा, लेकिन क्या आपने कभी इसका असल मतलब जानने की कोशिश की। आज तक कई लोगों को ऐसा लगता होगा कि जून की 2 तारीख को खाई जाने वाली रोटी दो जून की रोटी कहलाती है, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।
क्या दो जून की रोटी का असल मतलब?
अगर आप भी उन लोगों में से हैं, जो दो जून की रोटी को जून महीने की 2 तारीख से जोड़कर देखते हैं, तो चलिए आज आपको इसका असल मतलब बताते हैं। दरअसल, दो जून की रोटी का 2 तारीख से कोई लेना-देना नहीं है। यह कहावत लोगों के संघर्ष और असल जीवन को दर्शाती है। असल में यह एक अवधी कहावत (historical reference of idioms) है, जिसका मतलब दो वक्त की रोटी होता है। इस कहावत में जून का मतलब महीना नहीं, बल्कि वक्त या समय है।
कैसे हुई कहावत की शुरुआत?
इस कहावत की शुरुआत एक खास तबके के लोगों ने की थी। दरअसल, पुराने जमाने में जब गरीबी अपने चरम पर थी, तो लोगों को दो वक्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से नसीब होती थी। अगर दिन में खाना मिल गया, तो रात भूखे पेट की गुजारनी पड़ती थी और अगर रात में खाना मिल जाए, तो दिनभर भूखा रहना पड़ता था। दोनों की वक्त की रोटी कमाने के लिए लोगों को काफी मेहनत करनी पड़ती थी, इसलिए यह कहावत उस दौर से चलन में है। आज भी लोग मेहनत कर दो जून की रोटी कमाते हैं।