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दुर्घटना को दावत दे रही है परसोई पुलिया, लोगों ने लगाया गुणवत्ता विहीन कार्य करने का आरोप

डिप्टी ब्यूरो रिपोर्ट

सोनभद्र। जिले के चोपन ब्लॉक स्थित परसोई नया टोला से ओबरा को जोड़ने वाला मुख्य मार्ग पिछले एक साल से भी अधिक समय से टूटे हुए पुल के कारण मौत का घर बन गया है। इस पुल की जर्जर हालत ने स्थानीय निवासियों में भारी डर और आक्रोश पैदा कर दिया है। ग्रामीणों का स्पष्ट कहना है कि पुल इतना क्षतिग्रस्त हो चुका है और इस पर से गुजरना हर पल जानलेवा साबित हो सकता है। इसी भयावह स्थिति के कारण सवारी बसों ने इस रास्ते से चलना बंद कर दिया है जिससे छात्रों और राहगीरों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं पिकअप और अन्य छोटे वाहन चालक भी हर पल दुर्घटना के खौफ में आवागमन कर रहे हैं। यह केवल एक ढांचागत विफलता मात्र नहीं, बल्कि जनता के भरोसे और सरकारी धन के घोर दुरुपयोग का जीता-जागता और अक्षम्य उदाहरण बन गई है। स्थानीय निवासी छेदीलाल सेठ ने इस स्थिति पर गहरा आक्रोश व्यक्त करते हुए साफ तौर पर कहा है कि यह कोई विकास नहीं बल्कि बंदरबांट का सीधा उदाहरण है।

उनके अनुसार अधिकारी और जनप्रतिनिधि एक साल से ज़्यादा समय से इस टूटे पुल को यूं ही छोड़, हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। ऐसा लगता है कि वे किसी बड़ी दुर्घटना का इंतज़ार कर रहे हैं। सूत्रों ने बताया है कि यह पुल महज लगभग 4 से 5 साल पहले ही बना था और इतनी जल्दी इसके जर्जर होकर टूट जाने से निर्माण कार्य की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। यह साफ तौर पर दर्शाता है कि पुल के निर्माण में भारी भ्रष्टाचार हुआ है। यह सिर्फ एक पुलिया नहीं बल्कि जनता के पैसों और भरोसे पर किया गया मज़ाक है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मठता और ईमानदारी की छवि के बावजूद उनके ही अफसर उनके भ्रष्टाचार विरोधी निर्देशों को दरकिनार कर रहे हैं। यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि जनता का विश्वास सरकारी निर्माणों की गुणवत्ता और ईमानदारी से बुरी तरह हिल चुका है। जिस पुलिया को जनता के टैक्स के पैसे से बनाया गया था, आज उसकी दयनीय स्थिति चीख-चीख कर सरकारी तंत्र की उदासीनता और भ्रष्टाचार की कहानी बयां कर रही है। यह टूटती पुलिया एक बड़े और भीषण हादसे को निमंत्रण दे रही है। यह न केवल इस महत्वपूर्ण मार्ग से गुजरने वाले सैकड़ों से ज्यादा राहगीरों के लिए सीधा खतरा है, बल्कि सरकारी खजाने के खुलेआम दुरुपयोग का भी एक पुख्ता प्रमाण है। इस पुलिया की बदहाली को देखकर कई गंभीर और मूलभूत सवाल उठ रहे हैं, जिनके जवाब मिलना अत्यंत आवश्यक है और जिन पर सरकार को तुरंत संज्ञान लेना चाहिए। क्या निर्माण से पहले इस स्थान की वैज्ञानिक भू-जांच (जमीन का सर्वे) और मिट्टी की परख ठीक से की गई थी। क्या इसकी कोई विस्तृत तकनीकी रिपोर्ट मौजूद है जो निर्माण की व्यवहार्यता और दीर्घायु को प्रमाणित करती हो।

इस पुलिया के निर्माण में कितना पैसा स्वीकृत हुआ था और वास्तव में कितना खर्च किया गया? क्या लागत और निर्माण की गुणवत्ता के बीच कोई सीधा संबंध था या फिर गुणवत्ता मानकों से जानबूझकर और योजनाबद्ध तरीके से समझौता किया गया। इस विफलता का सीधा और मुख्य जिम्मेदार कौन है, ठेकेदार, प्रधान या परियोजना का इंजीनियर, या निर्माण की निगरानी करने वाले सरकारी अधिकारी, क्या यह सीधे तौर पर जनता और सरकार के साथ किया गया गंभीर विश्वासघात नहीं है, जब उनके खून-पसीने की कमाई से बनी बुनियादी संरचनाएं इतनी जल्दी अपनी मियाद पूरी कर टूट कर बिखर जाती हैं, ऐसे लोगों पर तुरंत और कड़ी कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए जो सरकारी धन का खुलेआम दुरुपयोग करते हैं और सार्वजनिक सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने से भी बाज नहीं आते। सोनभद्र के चोपन ब्लॉक अंतर्गत परसोई नया टोला क्षेत्र में ऐसे दो पुल हैं,एक पुराना है जो लगभग 10 साल हो रहा है और दूसरा लगभग 4 से 5 साल का है जो दोनों पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके हैं। इन मार्गों से गुजरने वाले लोग हर दिन अपनी जान जोखिम में डालकर यात्रा कर रहे हैं। यह भयावह स्थिति स्थानीय प्रशासन और सरकार की घोर लापरवाही को उजागर करती है।जब तक इन पुलों का युद्धस्तर पर पुनर्निर्माण नहीं होता, तब तक इस क्षेत्र के हजारों लोगों के लिए सुरक्षित आवागमन एक बड़ी चुनौती बना रहेगा। ग्रामीण मांग कर रहे हैं कि सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधि इस गंभीर समस्या पर तत्काल ध्यान दें और जल्द से जल्द इन पुलों का जीर्णोद्धार कराएं, ताकि यहां के लोग बिना किसी डर के सुरक्षित महसूस कर सकें।यह समय की मांग है कि उत्तर प्रदेश सरकार ऐसे मामलों का अविलंब संज्ञान ले, एक निष्पक्ष और त्वरित जांच करवाए और दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कानूनी कार्रवाई करे। ऐसा करने से ही सरकारी धन का दुरुपयोग बंद होगा और जनता के पैसे से बनने वाले निर्माण कार्य वास्तव में टिकाऊ, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण बन पाएंगे। आखिर, कब तक जनता को अपनी जान जोखिम में डालकर इन टूटे ढांचों से गुजरना पड़ेगा।

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