
परमपूज्य श्री माताजी निर्मला देवी का जन्मदिन विश्व के समस्त सहज योगियों के लिए उत्साह, उल्लास व उत्थान का पर्व है। माँ का जन्म 21, मार्च 1923 में मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में हुआ था। छिंदवाड़ा भारत के मध्य में है और इस दिन सूर्य भूमध्य रेखा से कर्क रेखा तक अपनी यात्रा आरंभ करता है। इस दिन दिन और रात बराबर होते हैं। इस प्रकार परमपूज्य श्री माताजी पूर्ण संतुलित स्थान और संतुलित काल में अवतरित हुई। उनके द्वारा प्रवर्तित सहज योग ध्यान साधना मानव जीवन को संतुलन प्रदान करता है। मानव भूतकाल और भविष्य काल के मध्य वर्तमान में पूर्ण संतुलन के साथ स्थित रहता है।
श्री माताजी का जन्म मात्र संयोग नहीं बल्कि एक पूर्व नियोजित घटना है। श्री माताजी इस घोर कलियुग में तब अवतरित हुई जब उनके इस आध्यात्मिक ज्ञान की संसार को सबसे ज्यादा जरूरत थी। श्री माताजी की आध्यात्मिक आंतरिक चेतना के परिणाम स्वरूप ही उन्होंने मानवीय चेतना विकास के लिए गहन चिंतन किया और मानव जाति का विकास के लिए अग्रसर रहीं। अपनी गहन ध्यान तपस्या और दूरदर्शिता के परिणामस्वरूप, उन्होंने जनमानस को आंतरिक और आध्यात्मिक ऊर्जा के स्रोत और संचरण का ज्ञान दिया। मानव उत्थान के लिए सर्वोपरि सहज योग का ज्ञान जीवन को विस्मयकारी परिवर्तन देता है।
आज एक ऐसा दौर है जब संपूर्ण विश्व में अशांति व्याप्त है, हम अपने आपको इस अशांति का हिस्सा बनने से नहीं रोक सकते। पर, परमपूज्य श्री माताजी द्वारा प्रदत्त सहजयोग हमें सारी अशांति से तटस्थ करता है। क्योंकि हम तटस्थ रहते हैं और इसीलिए हमारे आसपास की घटनाओं से प्रभावित होकर प्रतिक्रिया नहीं करते। सहज योग पाने के बाद सहज योग की अहमियत बताकर समाज, देश और विश्व को परिवर्तित करने की चाह रखते हैं और इसके लिए प्रयास करते हैं।
श्री माताजी ने इस दिव्य ऊर्जा के मानव को नवजीवन दिया। सहज योग मानवीय चेतना से जुड़ा हुआ है। सहजयोग में उतरने के बाद हम समझ पाते हैं कि हमारे अंदर व्याप्त ईश्वरीय शक्ति कुंडलिनी कितनी सहजता से जागृत होती है और हमें ईश्वरीय साम्राज्य से जोड़ देती है। यह एक जागृत क्रिया है और हाथों से व सिर के तालु भाग से प्रवाहित चैतन्य से हममें इस जागृति का बोध होता है। हम सहज योगी अपने अनुभव के आधार पर यह मानते हैं कि सहज योग ध्यान प्रक्रिया हमारे विकास की अंतिम सीढ़ी है।
कुंडलिनी नाम सदैव एक रहस्य रहा है और सालों पूर्व हमारे ऋषि मुनि इस कुंडलिनी शक्ति को प्राप्त करने हेतु गहन एकांत साधना, कठिन हठ योग करते थे लेकिन इसे बिरले योगियों ने ही प्राप्त किया। इस घोर कलियुग में जब मानव मात्र को इस शक्ति की जरूरत है इसीलिए परम पूज्य श्री माताजी अवतरित हुई और इन्होंने इस सहज ज्ञान को उन तक पहुंचाया जो ईश्वर को तलाश रहे थे। अब जरुरत है कि यह ज्ञान संपूर्ण विश्व में फैले ताकि शांति प्रस्थापित हो सके और मां के जन्म का उद्देश्य सार्थक हो सके। जब जब अधर्म बढता है, तब तब ईश्वर का आगमन होता है। इसी तारतम्य में हमारी परमपूज्य श्री माताजी भी अवतरित हुई। पहले के अवतरणों ने ज्ञान दिया, सच्चाई से अवगत कराया। परंतु, ईश्वर की अनुभूति नहीं करवा पाये। हर आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति इस तथ्य का साक्षी है कि परमात्मा हम सबके अंदर आत्मा रुप में विराजमान हैं। कुंडलिनी जागरण के बाद शरीर में परम चैतन्य के बहाव से साधक चैतन्य लहरियों को अपने हाथ और तालु पर महसूस करता है। अपने और दूसरों के चक्रों की स्थिति भी अपनी हथेली में महसूस कर पाते हैं। हमारे शरीर (सुक्ष्म शरीर) में स्थित चक्र हमारे शरीर के हर अंग की देखभाल करते हैं। शरीर की अस्वस्थता का कारण चक्रों का असंतुलित होना होता है। इसे हर आत्मसाक्षात्कारी जानते हैं और यही है सहजयोग का आध्यात्मिक विज्ञान।